Editorial
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05 Apr 2020

   सिंध्यिा प्रकरण से सबक ले कांग्रेस

   ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य रहे सिंधिया कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार होते थे। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस की केंद्र सरकार में सिंधिया लम्बे समय तक मंत्री भी रह चुके थे। सिंधिया का कांग्रेस छोड़ना पार्टी के लिए किसी बड़े सदमे से कम नहीं है।

   ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अचानक से कांग्रेस पार्टी नहीं छोड़ी है। वह लंबे समय से पार्टी में अपनी उपेक्षा को लेकर बार-बार कांग्रेस आलाकमान को चेता रहे थे मगर कांग्रेस आलाकमान ने उनकी बातों को तवज्जो देना उचित नहीं समझा था जिस कारण उनको कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल होने का एक बड़ा फैसला लेना पड़ा। 2018 के विधानसभा चुनाव के समय ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार माने जाते थे लेकिन चुनाव परिणामों के पश्चात कांग्रेस आलाकमान ने कमलनाथ को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया। उसके बाद सिंधिया चाहते थे कि उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया जाए लेकिन कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने सिंधिया की उस मांग पर भी ध्यान नहीं दिया जिस कारण अपने समर्थकों के दबाव के चलते उनको कांग्रेस पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होना पड़ा।

   सिंधिया प्रकरण से कांग्रेस आलाकमान के उन नेताओं की पोल खुल गई जो यह मानकर चल रहे थे कि सिंधिया में पार्टी से बगावत करने की हिम्मत नहीं है। वह सिर्फ पार्टी पर दबाव बना कर अपना महत्व जताने की कोशिश कर रहे हैं। किसी भी सूरत में वह पार्टी नहीं छोड़ेंगे लेकिन सिंधिया ने आला कमान के मंसूबों को धत्ता बताते हुए अपने राजनीतिक जीवन का एक बहुत बड़ा निर्णय लेकर एक तरह से राजनीति में पूरा यू-टर्न ले लिया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने ही पुराने कार्यकर्ता के हाथों हार जाने के बाद सिंधिया को लगने लगा था कि अब कांग्रेस पार्टी उनके लिये मुफीद नहीं रही है। वह भाजपा मंे जाने का मौका तलाश रहे थे। राज्य सभा चुनाव में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की हठधर्मिता के चलते सिंधिया को यह मौका मिल गया जिसका उन्होंने समय रहते भरपूर फायदा उठाया।

   कांग्रेस आलाकमान की अनदेखी के चलते ही मुख्यमंत्री रहे कई नेता पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं। 1992 से 2009 तक मेघालय में लगातार चार बार मुख्यमंत्राी रहे डीडी लपांग ने 2018 में कांग्रेस छोड़ दी थी। छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्राी अजीत जोगी, कर्नाटक में मुख्यमंत्री रहे एसएम कृष्णा, उड़ीसा में मुख्यमंत्राी व नो बार सांसद रहे गिरधर गोमांग, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रहे समीर रंजन, महाराष्ट्र, के मुख्यमंत्री रहे नारायण राणे, गोवा में मुख्यमंत्री रहे चर्चिल अलेमाओ, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के अतिरिक्त अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू तो पूरे मंत्रिमंडल के साथ ही कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे। इस तरह कांग्रेस के कई पूर्व मुख्यमंत्री जिनका अपने प्रदेशों में अच्छा असर था। उनका पार्टी छोड़ कर जाना कांग्रेस के लिए बहुत भारी साबित हो रहा है।

   असम कांग्रेस के अध्यक्ष व राज्यसभा सांसद रहे भुवनेश्वर कालिता ने संसद सत्र के दौरान ही कांग्रेस व राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर कांग्रेस को करारा झटका दिया था। अब वह भारतीय जनता पार्टी से असम से राज्यसभा के उम्मीदवार है। उससे पूर्व हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक तंवर, उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रही रीता बहुगुणा जोशी, आंध्र प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष बी सत्यनारायण, उत्तराखंड कांग्रेस के अध्यक्ष रहे यशपाल आर्य, बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक चैधरी, त्रिपुरा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे प्रद्युत देव बर्मन ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। इस तरह देखें तो कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं की हठधर्मिता के चलते पार्टी के बहुत से जनाधार वाले नेताओं को पार्टी छोड़ने को मजबूर होना पड़ रहा है। आज भी कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व में ऐसे लोगों का ज्यादा बोलबाला है जिनका जनता में कोई जनाधार नहीं है व छवि अच्छी नहीं है लेकिन ऐसे नेता लम्बे समय से राज्यसभा के रास्ते सांसद बने रहते हैं। केंद्र में जब भी कांग्रेस की सरकार बनती है तो ऐसे नेता केन्द्र में वरिष्ठ मंत्री बन जाते हैं। सरकार नहीं रहने पर पार्टी में बड़े पदों पर कब्जा जमा कर अपनी मनमानी चलाते हैं जिससे कांग्रेस को लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है।

   शीला दीक्षित जब दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थी तो पूर्व सांसद पीसी चाको दिल्ली के प्रभारी रहते उनको कमजोर करने में लगे रहते थे। यही हाल महाराष्ट्र के प्रभारी मलिकार्जुन खड़गे का है जिनके क्रिया कलापों से महाराष्ट्र कांग्रेस के अधिकांश विधायक नाराज है। मुंबई प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरूपम कई बार खुले आम पार्टी को कटघरे में खड़ा कर चुके हैं। आज कांग्रेस पार्टी कुछ नेताओं के कब्जे में है। पार्टी में आंतरिक लोकतंत्रा समाप्त हो चुका है। कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों का चुनाव हुए वर्षों बीत चुके हैं। वहां सिर्फ गांधी परिवार के वफादार ही सदस्य के रूप में मनोनीत किए जाते है। हालिया मध्यप्रदेश की घटना से सबक लेकर कांग्रेस आला कमान को अतिशीघ्र संगठन का पुनर्गठन कर वर्षो से महत्त्वपूर्ण पदों पर कुण्डली मार जमे लोगों को हटा कर ऐसे लोगों को पदाधिकारी बनाना चाहिये जो आम कार्यकर्ता को स्वीकार्य हो। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलेट, पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह व पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की लड़ाई खुलकर सड़कों पर है। यही हाल अन्य प्रदेशों का भी है जहां बड़े नेताओं में खुलकर अदावत है। ऐसी घटनाओं से आम कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर हो रहा है। कांग्रेस आलाकमान ने यदि शीघ्र ही उचित कदम नहीं उठाया तो आने वाला समय कांग्रेस के लिए और भी मुश्किलें लेकर आएगा।